हिन्दी शायरी

मैं क्या कोई कविता लिखुंके मैं ख़ुद एक फ़साना बन गया हूँ
क्या ज़माने से शिकायत करूं के मैं ख़ुद गुजरा ज़माना बन गया हूँ

हस्ते हैं लोग मेरे हाल पर के मैं उनके हँसने का बहाना बन गया हूँ
तेरी जुदाई मी वो हाल के जैसे ग़मों का इकलौता ठिकाना बन गया
हूँ

तेरी मोहब्बत में यूं चलका जाता हुनके जैसे एक भरा पैमाना बन गया हूँ
सच है तो कहती है दुनिया की मैं तुम्हारा दीवाना बन गया हूँ

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